Wednesday, January 18, 2017

‘’ताकि उन्हें भी सुकूं की नींद आ जाए’’... संजय सेज की अनूठी पहल



  ग्राउंड ज़ीरो के दूसरे एपिसोड में पढ़िए संजय सेज की कहानी । संजय का परिचय तो साधारण है लेकिन उपलब्धि बड़ी । सा इसलिए क्योंकि इनकी एक कोशिश ने सै कड़ों असहाय और बेघर परिवारों को मुस्कराने की वजह दी है । यकीन मानिए अगर किसी इंसान की वजह से वक्त से मजलूम चेहरे पर हंसी की कांतिमयी छटा बिखर जाए तो भला उससे ज्यादा खुशकिस्मत और कौन होगा । खुशकिस्मती का यह सिलसिला 2014 से शुरु हुआ, जब संजय ने ‘Sage Sweater Collection Drive’ नाम से एक इवेंट शुरु किया । जिसका मुख्य मकसद था से लोगों की मदद करना जो सर्दियों में फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं । सर्द रातों में धरती जिनका बिस्तर होती है और आसमां जिनका छत । से लोग जिन्हें दिनभर की कमरतोड़ मेहनत के बाद खाने के लिए किसी तरह 2 जून की रोटी तो नसीब हो जाती है लेकिन कंपकंपाती ठंड से बचने के लिए बस भगवान का ही आसरा होता है । दिसंबर-जनवरी की हाड़-मांस कंपाने वाली ठंड में जहां हिंदुस्तान का एक तबका रात को रजाई के अंदर सुकून की नींद ले रहा होता है, वहीं कुछ लोग परिवार सहित सड़क किनारे सोना तो दूर की बात तन ढकने को भी मजबूर होते हैंसे असहाय लोगों के लिए संजय बनकर आए मसीहा । इन्होंने गरीब लोगों को कपड़े बांटने की मुहिम शुरु की जो कि इंसान की बेसिक ज़रुरतों में से एक है । सर्दियों के आने की आहट के साथ ही संजय और इनकी टीम चौकन्नी हो जाती है । ये लोग घर-घर जाकर लोगों से गर्म कपड़े इकट्ठा करते हैं । सोशल मीडिया पर मुहिम चलाकर भी गर्म कपड़े इकट्टा किए जाते हैं । पर्याप्त कपड़े इकट्ठा होने के बाद संजय की अगुवाई में सेज की पूरी टीम रात को दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर इन्हें बांटने की मैराथन मुहिम चलाती है । असहाय लोगों को गर्म कपड़े और कंबल बांटे जाते हैं ताकि वो भी चैन से सो सकें। कैसे इस मुहिम की शुरुआत हुई, कहां तक पहुंची है ये मुहिम, कैसे इस मुहिम से जुड़े मास्टर शेफ इंडिया के रिपुदमन हांड ? इन सब सवालों के जवाब बताएंगे, क्योंकि इस पूरी मुहिम की ग्राउंड ज़ीरो ने की है पड़ताल । पेश है इस स्वेटर कलेक्शन ड्राइव को चलाने वाले संजय सेज से ग्राउंड ज़ीरो की पूरी बातचीत

सवाल- अपने बारे में बताइए ।

जवाब- मेरा नाम संजय तिवारी है लेकिन इस मुहिम से इतना लगाव हो गया है कि सेज ने तिवारी को रिप्लेस कर दिया । मूल रूप से यूपी के ललितपुर का रहने वाला हूं। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई वहीं से हुई। हायर एजुकेशन के लिए दिल्ली का रुख किया ।

सवाल- Sage Sweater Collection Drive का ख्याल कैसे आया ?

जवाब- दिल्ली में ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है जो सड़क किनारे गुज़र-बसर कर रहे हैं । आप रेलवे स्टेशन पर देखिए, बस अड्डे पर देखिए, मेट्रो स्टेशन के नीचे देखिए । अमूमन राह चलते आपको ऐसे लोग दिख ही जाएंगे जो परिवार सहित ठंड में बाहर रहने को मज़बूर हैं । न रहने को घर है न खाने को खाना। ऊपर से पहनने और ओढ़ने को कपड़ा भी नहीं है। इनकी क्या मज़बूरी है, ऐसा क्यों है, ये सिलसिला कब तक चलेगा ये तो मैं नहीं जानता लेकिन ये सब मैं पिछले कई सालों से देख रहा था। कोई भी ये नजारा देखेगा तो हृदय तो द्रवित होगा ही। मेरा भी होता था । देखकर मन में ख्याल आता कि क्या मैं कुछ कर सकता हूं इनके लिए । फिर ख्याल आता कि मैं कैसे इनकी मदद कर सकता हूं । मेरे पास तो इतने पैसे ही नहीं हैं कि मैं इनको घर दे सकूं, मैं इनको खाना दे सकूं।



सवाल- इस मुहिम की शुरुआत कैसे हुई ?

जवाब- इस घटना को लेकर मेरे मन में जितने भी सवाल चल रहे थे इन सभी सवालों को मैंने मेरी एक दोस्त के सामने रखा। उनका ज़िक्र ज़रूर करना चाहूंगा क्योंकि इस मुहिम का बेसिक आइडिया उन्हीं का है। रीना राय है उनका नाम । उन्होंने सुझाव दिया कि हम इस तरीके की मुहिम शुरु कर सकते हैं । जिसमें हम जरुरतमंद लोगों की मदद कर सकते हैं भले ही हमारे पास खुद की पूंजी न हो । मेहनत तो है इस तरीके के काम करने में लेकिन वाकई अगर आप समाजसेवा के तौर पर कुछ करना चाहते हैं तो बड़ी संतुष्टि मिलती है ये सब करके।

सवाल- इस मुहिम के चार साल पूरे हो चुके हैं । पहले सीजन के बारे में बताइए।

जवाब- पहला सीजन सबसे मुश्किल और चुनौतीभरा रहा। क्योंकि हमारे पास इवेंट को लेकर कोई खास तैयारी नहीं थी। सही खाका नहीं बन पाया था। हम भी नए थे। न कोई टीम थी । सिर्फ मैं और रीना । लोगों को भी हमारे इस मुहिम के बारे में ज्यादा नहीं पता था। और सबसे बड़ी बात ये शायद हमारे लिए एक अनोखा एक्सपेरिमेंट था। क्योंकि हमने भी इससे पहले इस तरीके की मुहिम के बारे में नहीं सुना था ।



सवाल- पहले सीजन के बाद का सफर कैसा रहा ?

जवाब- पहले सीजन में हमने काफी कपड़े डोनेट किए। लोगों की मदद करके हमें बड़ा अच्छा लगा। शुरुआत में हमने नहीं सोचा था कि शायद इसका दूसरा सीजन कर भी पाएंगे लेकिन लोगों ने हमारी इस मुहिम को सराहा। उनका साथ मिला। दूसरे सीजन में मास्टर शेफ इंडिया के चौथे सीजन के विनर रिपुदमन हांडा हमारी इस मुहिम से जुड़े ।







हमारी टीम ने साथ में मिलकर ज़रूरतमंदों को गर्म कपड़े बांटे। इस मुहिम को प्रमोट करने के लिए हमनें सोशल मीडिया का सहारा लिया। जिससे दूर-दूर से लोग हमसे जुड़े। लोगों ने मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक मदद भी की। जिसका नतीजा यह हुआ कि लोगों से मिले पैसे से लगभग 20000 रुपए के कंबल बांटे गए। इसी तरह तीसरे सीजन में लगभग 50000 रुपए के गरम कंबल और 15000 इकट्ठे किए गए गरम कपड़े लोगों को बीच वितरित किए।  

सवाल- इस साल इस मुहिम का चौथा सीजन चल रहा है । चार साल पहले चला ये कारवां अब कहां तक पहुंचा है ?

जवाब- चार साल पहले हम सिर्फ दो थे। लेकिन अब हमारे पास कलेक्शन ड्राइव की पूरी टीम बन गई है । जिससे हम ज्यादा से ज्यादा कपड़े इकट्टा करते हैं और ज्यादा से ज्यादा जरुरतमंदों तक पहुंच कर उनकी ठंडी भगाते हैं । लोगों का हमें भरपूर सहयोग मिल रहा हैं । इस बार मल्टीनेशनल कंपनी C-VENT ने तकरीबन 5000 गरम कपड़े जुटाने में मदद की । हमारी टीम ने 15000 से ज्यादा गरम कपड़े बांटे ।

सवाल-  आपका यह इवेंट कहां-कहां पर चल रहा है ?

जवाब- शुरुआत हमने सिर्फ दिल्ली से की थी । लेकिन इस बार दिल्ली समेत नोएडा, गाज़ियाबाद और फरीदाबाद में भी हमनें गर्म कपड़े डोनेट किए । धीरे-धीरे इस मुहिम को देश के दूसरे हिस्सों में भी ले जाने का इरादा है । हम चाहते हैं कि मदद करना एक ट्रेंड बन जाए। हर इंसान उस इंसान की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहे जो ज़रुरतमंद है ।  

सवाल- गर्म कपड़े आप लोग किस-किस दिन बांटते हैं ?

जवाब- हमारी टीम अक्टूबर से कपड़े इकट्ठा करना शुरु कर देती है । दिसंबर के पहले हफ्ते से हम लोग सड़कों पर गरीब और असहाय लोगों को गर्म कपड़े बांटना शुरु कर देते हैं जो कि सर्दियां खत्म होने तक (फरवरी-मार्च) चलता रहता है । लगातार एक हफ्ता बांटने के बाद फिर हम एक हफ्ता कपड़े इकट्ठा करते हैं । जैसे ही पर्याप्त कपड़े होते हैं बांटना शुरु कर देते हैं ।

सवाल- क्या-क्या परेशानियां झेलनी पड़ती हैं इस मुहिम को चलाने में ?

जवाब- कई बार कपड़े इतने ज्यादा इकट्टे हो जाते हैं कि रखने के लिए जगह कम पड़ जाती है । कपड़ों की देखभाल करना ज़रूरी होता है ताकि चूहे वगैरह न काटें । अलग-अलग जगहों पर कपड़े बांटने के लिए गाड़ी की ज़रूरत पड़ती है। जिससे कई बार समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।     

सवाल- कपड़े बांटने के दौरान कोई ऐसी असाधारण घटना घटी हो जो आपको याद आ रही हो ?

जवाब- हर दिन कोई-न-कोई घटना घटती ही है । जिन लोगों के बीच हम कपड़े बांटते हैं कई बार वो लोग जल्दी पाने के चक्कर में छीनाझपटी शुरु कर देते हैं । धक्का-मुक्की की नौबत आ जाती है । लेकिन सावधानी बरतते हुए कोशिश की जाती है कि हर उस ज़रूरतमंद शख्स (बच्चे, महिला, बुजुर्ग, अपंग) को गरम कपड़े मिल जाएं जो वहां मौजूद है । कपड़ा पाने के बाद जब उसके चेहरे पर मुस्कान आती है तो वो हमारी तरफ प्यारभरी निगाहों से देखता है तो बड़ी आत्मिक संतुष्टि मिलती है ।

   


सवाल- अगर कोई आपसे या फिर इस मुहिम से जुड़ना चाहे तो कैसे जुड़े ?

जवाब- मेरी ई-मेल आईडी sanjaytiwarisage@gmail.com पर संपर्क कर सकता है या फिर फेसबुक पर हमारे इवेंट के पेज ‘Sage Sweater Collection Drive’ के जरिए भी जुड़ सकता है ।

सवाल- ग्राउंड ज़ीरोके बारे में क्या कहना चाहेंगे ?

जवाब- ग्राउंड ज़ीरो का धन्यवाद । मुझे इस बात की ज्यादा खुशी नहीं है कि मेरा इंटरव्यू छापा 
गया बल्कि खुशी मुझे इस बात की है कि इस खबर के माध्यम से और भी लोग हमारी इस मुहिम से जुड़ेंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा गरीब और असहायों की मदद की जा सके ।
                                                     
                                                         साभार- ग्राउंड ज़ीरो

(ग्राउंड ज़ीरो के अगले एपिसोड में पढ़िए मिसाल कायम करने वाले एक और धमाकेदार शख्स का इंटरव्यू, जो होगा हमारे और आपके बीच का )

(अगर आपके पास भी है किसी से शख्स की कहानी जिसने किया है सोचने पर मजबूर। वो आप खुद भी हो सकते हैं, आपका कोई जानने वाला हो सकता हैं, आपका कोई दोस्त या रिश्तेदार भी हो सकता है। तो आप हमें बताइए। हम करेंगे ग्राउंड ज़ीरो से पड़ताल और छापेंगे उसकी मिसालभरी दास्तां। देखेंगे दुनिया उसकी नज़र से। )   

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Thursday, January 12, 2017

नौकरी छोड़ ‘खेती से लखपति’ बनने की मिसालभरी कहानी



  ‘ग्राउंड जीरो के पहले एपिसोड में पढ़िए रवि पाल की कहानी । मैनपुरी के इस युवा किसान ने लिखी है सफलता की नई इबारत । अमूमन उम्र के जिस पड़ाव पर युवा मौजमस्ती करता है उस उम्र में रवि कई किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरे हैं । सफलता का पर्याय बन चुके रवि पाल के लिए इस मंजिल तक पहुंचना कतई आसान नहीं था। इसके पीछे छिपा है उनका वो दिलेर फैसला जिसे लेने की कुव्वत बिरले लोगों में ही होती है। जिन खतरों के बारे में हम और आप सिर्फ सोच सकते हैं, रवि पाल ने उन खतरों से दो-दो हाथ किए । आज से लगभग 2 साल पहले रवि ने एक अच्छी खासी नौकरी से जब इस्तीफा दिया तो घरवालों ने विरोध किया क्योंकि हर मां-बाप का यही सपना होता है कि उनका बेटा पढ़- लिखकर एक दिन अच्छी-खासी नौकरी करे । कुछ लोग से होते हैं जो वक्त के सांचे में ढल जाते हैं लेकिन रवि पाल जैसे लोग वक्त को सांचे में ढाल देते हैं । जिनके सपनों की उड़ान इतनी ऊंची होती है कि आसमां भी छोटा नज़र आने लगता है । दिसंबर 2014 में रवि ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। रवि एलएनटी और कोटेक महिंद्रा जैसी बड़ी कंपनियों में अच्छी पोजीशन पर थे। एमबीए डिग्री होल्डर के इस फैसले से हर कोई हैरान था। लेकिन रवि को तो वही करना था जो उन्हें भाता था। जिसे करके उन्हे सुकूं आता था। जिसे करने को उनका दिल हिलोरें मारता था। दिल्ली-एनसीआर जैसे मेट्रो सिटी में 10-7 ऑफिस की नौकरी, एसी के अंदर टाई लगाकर सूटबूट पहनकर बैठने वाले रवि अब पहुंच चुके थे मैनपुरी की चिलचिलाती धूप के खेतों में किसानी करने । लेकिन रवि के दिलोदिमाग में थी कुछ अलग करने की चाहत, कामयाबी का जुनून और विश्वास का जज़्बा। रवि ने जब ज़ीरो से शुरुआत की तो आखिर उन्हें किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ा, कैसे रवि पाल का नाम आज सफल किसानों में शुमार किया जाता है, कैसे रवि पाल ने इतना मुश्किल फैसला लिया? ये सब जानने के लिए आपको पढ़ना होगा ये एपिसोड। क्योंकि ग्राउंड जीरो ने की है रवि पाल की तहक़ीक़ात । लीजिए पेश है ग्राउंड जीरो से रवि पाल की रिपोर्ट-

सवाल- सबसे पहले आप अपने बारे में बताइए ।

जवाब- मेरा नाम रवि पाल है। मूल रूप से मैनपुरी के बेवर कस्बे के पद्मपुर छिबकरिया गांव का रहने वाला हूं।

सवाल- अपनी शुरुआती पढ़ाई के बारे में बताइए।

जवाब-  गांव की ही प्राइमरी पाठशाला से पांचवी तक पढ़ाई की उसके बाद क्रिश्चियन इंटर कॉलेज मैनपुरी से हायर सेकेंडरी की शिक्षा ली। श्री चित्रगुप्त डिग्री कॉलेज से स्नातक किया । एमबीए का कोर्स करने के लिए मथुरा का रुख किया जहां सचदेवा इंस्टीट्यूय ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया ।


सवाल- आपने एमबीए किया है दिल्ली में मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे । फिर अचानक खेती करने का ख्याल कैसे आया ?

जवाब- पहली बात तो यह कि मैं हमेशा से कुछ अलग करना चाहता था। लेकिन कुछ परेशानियों के चलते अपना काम शुरु नहीं कर पा रहा था। जिससे संतुष्टि नहीं मिल पा रही थी। नौकरी करने से सिर्फ मेरा ही भला हो रहा था लेकिन मैं कुछ सा करना चाहता था जिससे लोग मुझसे जुड़ें और उससे सिर्फ मेरा ही फायदा न होकर ज्यादा से ज्यादा लोगों का फायदा हो। तो कहीं-न-कहीं ये बहुत बड़ी वजह साबित हुई नौकरी छोड़ने की ।

सवाल- जब आपने नौकरी छोड़ी उसके बाद घरवालों का क्या रिएक्शन था ? कितना विरोध सहना पड़ा ?

जवाब- विरोध तो बहुत सहना पड़ा लेकिन मैंने भी जिद कर ली कि अब तो कुछ हासिल करना है 
। घरवाले भी अपनी जगह पर सही थे आखिर पूरे परिवार में मैं ही अकेला कमाने वाला । घरवालों के साथ-साथ आसपास के लोगों के ताने भी सुनने पड़े- कि चार दिन धूप में खेत जाना पड़ेगा तो पता चल जाएगा परदेसी बाबू को

सवाल- एक तरफ जहां देश का किसान बदहाली में गुजर-बसर कर रहा है, आत्महत्या कर रहा है, से में आपने किसानी को अपना पेशा बनाया और गेंदे की फसल उगायी?

जवाब- इस फैसले को लेने के पीछे एक घटना का जिक्र करना चाहता हूं। हमारे गांव में नीलगाय का बहुत आतंक है, जो कि बीघे-बीघेभर फसल को चौपट कर देती हैं, जिससे किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है । तो मैंने सोचा क्यों न इस चुनौती को स्वीकार किया जाए और मैंने एक सी फसल उगानी चाही जिसे नीलगायों से कोई खतरा न हो।

सवाल-  हमारे दर्शकों को गेंदे की फसल के बारे में बताइए।

जवाब- गेंदे की फसल को नीलगाय बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचाती है और यह बहुत ही कम समय में तैयार होने वाली फसल है । साथ-ही-साथ फसल को लगाने में लागत भी कम आती है जिससे किसान को मुनाफा ज्यादा मिलता है

सवाल- आपने गेंदे की फसल कैसे उगायी ?

जवाब- शुरुआत में मैंने दो बीघे में गेंदे की फसल लगायी। जिससे 5 महीने में लगभग 75 हजार का फायदा हुआ। धीरे-धीरे दायरा बढ़ाता गया। अब लगभग 6 बीघे में गेंदे की फसल लगाई है । दिल्ली और आगरा के फूलों की मंडियों में हमारे गेंदे की भारी डिमांड है । जिसके चलते हर सीजन से अब लगभग 2 लाख रुपए तक की कमाई हो जाती है




सवाल- गेंदे की प्रजाति के बारे में बताइए। आपने कौन सी प्रजाति लगाई है ?

जवाब- शुरुआत में ज्यादा पता नहीं था। जो प्रजाति लगाई उससे ज्यादा पैदावार नहीं हुई। बाद में कलकत्ता से कलकतिया बीज मंगाया । उसकी पैदावार  बड़ी अच्छी रही । कलकतिया प्रजाति की सबसे अच्छी बात यह है कि खाद कम डालनी पड़ती हैपैदावार बढ़िया है। 25 दिन के अंदर पौधा तैयार हो जाता है, 50-60 दिन के अंदर फूल आने लगते हैं और ढाई से तीन महीने बाद कमाई होने लगती है । इसके अलावा मैंने इस बार थाईलेंड से भी गेंदे के बीज मंगाए हैं।

सवाल- थाईलेंड के गेंदे की क्या खासियत है ?

जवाब- अमूमन हमारे देश में जो भी गेंदे पाए जाते हैं वो सिर्फ तीन-चार महीने तक ही फसल दे पाते हैं जबकि थाईलेंड के गेंदे बारह महीने फूल देते हैं

सवाल- आप एमबीए हैं,  पढे-लिखे किसान हैं । पढ़ाई का कितना यूज करेंगे खेती में ?

जवाब- अक्सर लोग कहते हैं कि किसानी का पढ़ाई-लिखाई से क्या ताल्लुक। लेकिन सा नहीं है, पढ़ाई-लिखाई का किसानी से संबंध हैसा भी नहीं है कि जो पढ़ा-लिखा नहीं है वो किसानी नहीं कर सकता। मेरे कहने का मतलब है पढ़ा-लिखा आदमी अनपढ़ किसान से ज्यादा पै दावार करेगा। ज्यादातर किसान अनपढ़ होने से किसानी का सही गणित नहीं लगा पाते कि कितने हेक्टेयर फसल में कितनी खाद पड़ेगी, कितनी बीज पड़ेगी या फिर सिंचाई के दौरान पानी की मात्रा क्या होगी। इसलिए एमबीए होने के नाते, पढ़ा-लिखा होने के नाते में केलकुलेटेड खेती करूंगा। जो कि पूरी तरह से व्यावसायिक होगी।

सवाल- अभी मुख्य रुप से किस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं?

जवाब- मैं अभी जैविक खेती पर काम कर रहा हूं।

सवाल- जैविक खेती क्या होती है ?

जवाब- जैविक खेती का मतलब है शुद्ध और परंपरागत खेती। पैदावार बढ़ाने के लिए आज का किसान खेती में अनावश्यक रूप से रासायनिक तत्वों का ज्यादा इस्तेमाल कर रहा है जो कि अनाज को जहरीला बना रहा है । यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । लेकिन जैविक खेती में शुद्ध घरेलू खाद का इस्तेमाल किया जाता है जिससे ज़मीन की उर्वरा भी बना रहती है और अनाज भी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है

सवाल- किसानों की दुर्दशा कैसे दूर की जा सकती है ?

जवाब- पहली बात तो किसान की फसल का सही मूल्य निर्धारण होना चाहिए। दूसरी बात लागत मूल्य से दोगुने पर फसल बीमा होना चाहिए। मेरी कोशिश है कि आगे आने वाले समय में मैं खुद 
किसानों की फसल लागत से दुगुने मूल्य पर बिकवाऊं।


सवाल- अगर कोई किसान या इच्छुक व्यक्ति आपसे संपर्क करना चाहे तो कैसे करे ?

जवाब- मेरी ई-मेल आईडी Ravi.pal1989bsc@gmail.com पर संपर्क कर सकता है या फिर मुझे फेसबुक पर (Ravi Pal) फॉलो कर सकता है

सवाल- ग्राउंड जीरोके बारे में क्या कहना चाहेंगे ?

जवाब- आप लोगों की तरफ से ये बहुत ही अच्छी पहल है । सेलिब्रिटीज को तो लोग जानते ही हैं लेकिन इस प्लेटफॉर्म की वजह से पहली बार उन लोगों के बारे में भी पढ़ने-सुनने और जानने को मिलेगा जिनका परिचय तो साधारण है लेकिन उपलब्धि बड़ी। जिन्होंने परिवर्तन के लिए बिगुल बजा दिया है

                                                                 साभार-ग्राउंड जीरो


(ग्राउंड ज़ीरो के अगले एपिसोड में पढ़िए मिसाल कायम करने वाले एक और धमाकेदार शख्स का इंटरव्यू, जो होगा हमारे और आपके बीच का )

(अगर आपके पास भी है किसी से शख्स की कहानी जिसने किया है सोचने पर मजबूर। वो आप खुद भी हो सकते हैं, आपका कोई जानने वाला हो सकता हैं, आपका कोई दोस्त या रिश्तेदार भी हो सकता है। तो आप हमें बताइए। हम करेंगे ग्राउंड ज़ीरो से पड़ताल और छापेंगे उसकी मिसालभरी दास्तां। देखेंगे दुनिया उसकी नज़र से। )   

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